लेखनी कहानी -07-Nov-2022 हमारी शुभकामनाएं (भाग -7)
हमारी शुभकामनाएं:-
श्राद:-
पितृपक्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू हो होता है और आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक रहता है. इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 10 सितंबर से 25 सितंबर तक था। पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए तर्पण व पिंडदान किया जाता है.श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है।
आज भूमिका के दादाजी का श्राद्ध था। इस दिन इसके माता- पिता तर्पण कर एक ब्राह्मण को भोजन करवाते हैं। इस दिन मां दादाजी का मन पसंद दही- बड़ा अवश्य बनाती हैं। भूमिका ने अपने दादाजी को कभी नहीं देखा। परंतु, फिर भी वह उनसे इतना प्रेम और लगाव महसूस करती थी। सोचती थी यदि मेरे दादाजी मेरे समक्ष होए तो मैं अपनी हर मनचाही ख्वाहिश पूरी करवा लेती। मां पिताजी भी मुझे तब रोक या टोक नहीं सकते थे।
वह जब दूसरे बच्चों के दादाजी को देखती तो उसे उसके दादाजी की बहुत याद सताती थी। परंतु, वह यह बात किसी को बताती नहीं थी। उसके विद्यालय के जो प्रधानाध्यापक सर थे, वे उसे बहुत प्रेम करते थे। उसे है बात के लिए प्रोत्साहित करते। उसे है बात के लिए सराहते। उनमें उसे अपने दादाजी की छवि दिखाई देती थी। वे बुज़ुर्ग थे। अतः जब भी कभी कहीं बाज़ार में मिल जाते, वह दूर से देखते ही उनके समीप जाकर उनके चरण- स्पर्श अवश्य करती। उनसे बात अवश्य करती उनका आशीर्वाद अवश्य लेती।
वह उनका बहुत सम्मान करती थी। उसे याद है एक बार अंतिम परीक्षा में उसके अंक कुछ कम रह गए थे, तब मां पिताजी ने उसे समझाया था। परंतु, उसके प्रधानाध्यापक सर ने उसे प्रोत्साहित किया और कहा कि तुम और भी बेहतर कर सकती हो। बस फिर क्या था उसमें ना जाने कहां से एक जोश उत्पन्न हुआ और वह अगली परीक्षा में बेहद अच्छे अंक से पास हुई। उसके मां पिताजी से भी वे सदैव उसकी प्रशंसा करते थे। और जब कक्षा में पढ़ाते तो बोर्ड पर यदि कुछ लिखवाना होता तो उसे ही खड़ा करते। उन्हें उसकी हैंड राइटिंग बेहद पसंद थी। उसे एक बार इसके लिए प्रथम स्थान भी प्राप्त हुआ था।
वे सर अब इस संसार में नहीं हैं। परंतु, आ भी जब कभी दादाजी का ज़िक्र आता है, तो भूमिका को वे सर अवश्य याद आते हैं। इस बार भूमिका के माता- पिता ने भी यह सोचा कि हर बार तो हम। ब्राह्मण को भोजन करवाते ही हैं। क्यों न इस बार वृद्ध आश्रम में जाकर कुछ दान दक्षिणा की जाए। उनका यह विचार भूमिका को बहुत पसंद आया। उसे उसके माता पिता पर गर्व महसूस हो रहा था। जब वे लोग वृद्ध आश्रम पहुंचे। भीतर जाने पर उसे बहुत से बुज़ुर्ग पुरुष एवम महिलाएं दिखी। सभी को दान दक्षिणा देने के पश्चात् भूमिका एवम उसके माता- पिता ने सभी से आशीर्वाद लिया वे लोग बहुत ही प्रसन्न थे। आज उन सभी को ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे स्वयं दादाजी एवम दादी उनको अलग अलग रूपों में आशीर्वाद देने आए हों। अतः उनकी मनोकामना साक्षात पूर्ण हो गई हो।
#30 days फेस्टिवल / रिचुअल कम्पटीशन
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
19-Nov-2022 05:33 PM
शानदार
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Swati Sharma
20-Nov-2022 12:21 AM
आभार
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Khan
11-Nov-2022 10:54 AM
Bahut khoob
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Swati Sharma
11-Nov-2022 11:03 AM
Thank you
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Palak chopra
09-Nov-2022 03:51 PM
Shandar 🌸🙏
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Swati Sharma
10-Nov-2022 08:50 PM
Thank you
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